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Saturday 7 September 2019

गंगा बहने की वजह पूछने वाले भारत के रत्न भूपेन

कला की हर विधा की सांस्कृतिक यात्रा करते खुद को यायावर बताने वाले संगीत-साहित्य के महाप्राण की कलम की धार ऐसी थी कि 'दिल हूम हूम' करे और संगीत की तान ऐसी कि कहीं दूर उठती लहरों की गूंज सरसराती हुई कानों के पास से निकल जाए। वह कला की हर विधा में लोक संस्कृति के रंग भरते हुए कवि, कहानीकार, गायक, लेखक संगीत निर्देशक, पत्रकार और फिल्मकार के रूप में अपनी यात्रा पर आगे बढ़ते रहे। असम के तिनसुकिया जिले के सादिया गांव में 8 सितंबर 1926 को नीलकांत और शांतिप्रिया के यहां भूपेन का जन्म हुआ था। भूपेन 10 भाई-बहनों में सबसे बड़े थे। मां ने नन्हे भूपेन का असमिया और परंपरागत बांग्ला संगीत से परिचय कराया और बहुत छोटी उम्र से ही वह गीत लिखने और गाने लगे। उन्होंने 1938 में 11 वर्ष की उम्र में असम में ऑल इन्डिया रेडियो के लिए पहला गीत गाया और उसके कुछ ही समय बाद असमिया फिल्म इन्द्रमालती में बाल कलाकार के रूप में अभिनय किया और गीत भी गाया। अमेरिका से आया रिसर्च के लिए बुलावा लेखन और संगीत में रुचि के बावजूद उनकी पढ़ाई में कहीं कोई बाधा नहीं आई और उन्होंने गुवाहाटी के कॉटन कॉलेज से 1942 में इंटरमीडिएट और उसके बाद बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से ग्रैजुएशन और पोस्टग्रैजुएशन की पढ़ाई की। उन्हीं दिनों भूपेन दा को अमेरिका में मास कम्युनिकेशन पर रिसर्च करने का प्रस्ताव मिला। कोलंबिया विश्वविद्यालय में अपने पांच साल के शोध काल में भूपेन ने दुनिया की कई संस्कृतियों को करीब से देखा और उसमें भारत की सांस्कृतिक विरासत के रंग भर दिए। भूपेन दा की कालजयी रचना ‘ओ गंगा बहिचे केनो’ (ओ गंगा बहती हो क्यों?) भी उन्हीं दिनों के संस्कृतियों के संगम का परिणाम थी। प्यार, शादी और अलगाव सात समंदर पार रहते हुए भूपेन की मुलाकात प्रियंवदा पटेल से हुई और दोनों ने 1950 में विवाह कर लिया। अमेरिका में ही उनके पुत्र तेज का जन्म हुआ। 1953 में वह अपने परिवार के साथ स्वेदश लौट आए और हजारिका ने कुछ समय तक गुवाहाटी विश्विवद्यालय में नौकरी की। इस बीच पत्नी के साथ उनका अलगाव हो गया और वह पूरी तरह से साहित्य और संगीत के हो गए। भूपेन हजारिका ने 'दिल हूम हूम करे', 'हे डोला' 'ओ गंगा बहती हो क्यों', 'एक कली दो पत्तियां' जैसे मशहूर गानों को संगीत दिया था। भारत रत्न फिल्मकार के रूप में भी उनका सफर बेहतरीन रहा और उन्हें कई राष्ट्रीय पुरस्कारों के अलावा दादा साहब फालके पुरस्कार से भी नवाजा गया। नवंबर 2011 में उनका निधन हो गया। 2019 में उन्हें ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया। भूपेन हजारिका की लेखनी और आवाज देश की ऐसी धरोहर है, जो गंगा की धारा की तरह सदा अविरल रहेगी।


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