बॉलिवुड ऐक्ट्रेस लारा दत्ता (Lara Dutta) की नई फिल्म 'बेल बॉटम' (Bell Bottom) गुरुवार को रिलीज हो गई है। फिल्म को क्रिटिक्स के साथ ही दर्शकों का बढ़िया रेस्पॉन्स मिला है। साथ ही फिल्म में लारा दत्ता की भी खूब तारीफ हो रही है। फिल्म में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का किरदार निभाकर लारा दत्ता ने सबको चौंका दिया है। उनके लुक () को देखकर पहली बार में शायद ही किसी ने उन्हें पहचाना। 'नवभारत टाइम्स' से खास बातचीत में खुद लारा कहती हैं कि इस किरदार में वे खुद को ही नहीं पहचान पाईं। ऐक्ट्रेस ने बताया कि उनके पिता इंदिरा गांधी के पर्सनल पायलट थे, ऐसे में उनके इनपुट्स भी रोल में बहुत काम आए। फिल्म के सिलसिले में लारा दत्ता ने और क्या कुछ कहा, पढ़िए ये खास बातचीत: फिल्म में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के किरदार में आपको देखकर हर कोई हैरान रह गया। कैसे ढलीं आप इस भूमिका में?जी, सब यही बोल रहे हैं कि हम आपको पहचान ही नहीं पाए, तो तैयारी के दो फेज थे। एक तो मेकअप और प्रोस्थेटिक का, जिसका श्रेय विक्रम गायकवाड जी को जाता है। उन्होंने मेरे चेहरे का मोल्ड बनाया, फिर उससे प्रोस्थेटिक पीसेस बनाए। जब लुक तैयार हो गया, तो सब लोग थोड़े हैरान थे कि हां, ये काफी मिलती-जुलती है। मैं खुद शीशे में अपने को देखकर चौंक गई थी कि अरे बाप रे, मैं तो खुद को ही नहीं पहचान पा रही हूं। फिर, उनका हावभाव, अंदाज सीखने के लिए मैंने मिसेज गांधी के बहुत सारे इंटरव्यूज के विडियो देखे। साथ ही, मैं खुशनसीब हूं कि मेरे पापा विंग कमांडर एलके दत्ता एयरफोर्स में थे। वे बहुत साल के लिए इंदिरा गांधी जी के पर्सनल पायलट थे, तो मैं बचपन से उनकी कहानियां सुन रही हूं कि वे कैसे लोगों से बात करती थीं, कैसा बर्ताव था, तो मैंने पापा से भी बहुत से इनपुट लिए। जितना मैंने अपना रोल देखा है, मैं खुद से बहुत खुश हूं और लोगों की प्रतिक्रिया जानने के लिए एक्साइटेड हूं। जब आपको यह किरदार ऑफर हुआ, तो आपकी पहली प्रतिक्रिया क्या थी? कैसे राजी हुईं इसके लिए?ये फिल्म मुझे अक्षय कुमार ने मई 2020 में तब ऑफर की थी, जब लॉकडाउन था। अक्षय ने मुझे फोन करके बोला कि लारा, ये एक फिल्म है, जिसमें इंदिरा गांधी का रोल मैं चाहता हूंं कि आप करें। मैं एकदम चौंक गई कि आपको मुझमें इंदिरा गांधी कहां से दिख रही हैं। दूर-दूर तक कोई समानता है नहीं (हंसती हैं), पर अक्षय को विश्वास था कि हम लुक पर काम करेंगे, पर जिस बाडी लैंग्वेज और ठहराव की जरूरत है, मुझे लगता है कि आप निभा सकती हैं, तो उन्हें ज्यादा विश्वास था। उतना मुझे खुद नहीं था। मैं बहुत नर्वस थी कि मैं कर पाऊंगी या नहीं, लेकिन हर ऐक्टर चाहता है कि वह अपनी जिंदगी में एक बार ऐसी आइकॉनिक पर्सनैलिटी को निभाएं और इंदिरा गांधी ऐसी पर्सनैलिटी हैं कि मेरे खयाल से ये रोल जिस भी ऐक्ट्रेस को ऑफर किया जाता, वो 100 पर्सेंट करती। आप लोगों ने लॉकडाउन खुलते ही फिल्म को शूट करने का साहसिक फैसला लिया था। तब डर नहीं लगा, क्योंकि आपकी छोटी बेटी भी है?बिलकुल डर था। उस वक्त तो वैक्सीन भी नहीं थी। हमें ये भी नहीं पता था कि हम इससे निकल पाएंगे या नहीं। हर जगह जो खबरें भी आ रही थीं, वे काफी नेगेटिव थीं, पर वाशु जी (निर्माता) को बहुत क्रेडिट देती हूं कि उन्होंने उस दौर में ये तय किया कि फिल्म इंडस्ट्री नहीं रुकनी चाहिए। हमें जितनी भी मेहनत करनी पड़े, जितने भी प्रोटोकॉल निभाने पड़े, काम नहीं रुकना चाहिए। उन्हें अक्षय कुमार जैसे बड़े स्टार से सपोर्ट भी मिला, जिसने कहा कि हम चलते हैं। फिर, सेफ्टी के जो इंतजाम हमने देखे, उससे सारी घबराहट खत्म होती गई। इंडस्ट्री को भी हौसला मिला कि ये लोग कर सकते हैं, तो हम भी कर सकते हैं। धीरे-धीरे कई लोगों ने शूटिंग चालू की। अब भी बेल बॉटम थिएटर्स में आ रही है, जबकि सभी राज्यों में अभी थिएटर खुले नहीं हैं, लेकिन थिएटर मालिकों के लिए, इतने सारे लोग जो इसमें काम करते हैं, उनके लिए ये बहुत बड़ी बात है कि उनका काम शुरू हो। थिएटर इंडस्ट्री को इतना सारा नुकसान हुआ है कि ये हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम एक-दूसरे को सपोर्ट करें। बिजनस के लिहाज से, पूरे देश में थिएटर्स खुले बिना फिल्म रिलीज करना रिस्की फैसला नहीं है?बिलकुल मैं ऐसा मानती हूं। हमारे लिए बेस्ट सिचुएशन ये होती कि थिएटर पूरे खुले होते। दर्शकों की संख्या 100 न सही, 50 पर्सेंट ही होती, पर हम ये भी नहीं भूल सकते हैं कि कोविड गायब नहीं हो गया है। अब भी बहुत जगहों पर स्थिति गंभीर है, लेकिन जिंदगी रुक नहीं सकती है। हम बार-बार कह रहे हैं कि लोग थिएटर में जाए, तो बहुत सावधानी और कोविड प्रोटोकॉल को फॉलो करते हुए जाएं। मेरे मानना है कि वाशु जी ने बहुत सोच-समझकर ये कदम उठाया है। वे रिलीज करने जा रहे हैं, तो उन्होंने अपने कमर्शल के बारे में भी सोचा होगा। 15 अगस्त पर बेल बॉटम के साथ दो और देशभक्ति फिल्में 'भुज' और 'शेरशाह' भी आई हैं, देशभक्ति वाली फिल्मों के इस ट्रेंड की आप क्या वजह मानती हैं?देखिए, मेरे हिसाब से हर तरह की फिल्में बननी चाहिए। आप चाहे देशभक्ति वाली फिल्म बनाएं या खिलाड़ियों की, हमारी इंडस्ट्री ने सच्ची घटनाओं या रियल लोगों से प्रेरित होकर बहुत सारी फिल्में बनाई हैं, पर मुझे कभी ऐसा नहीं लगता कि यार, इन चीजों पर बहुत देख लिया, अब इन पर कुछ नहीं देखना, क्योंकि इंडियन होने के नाते आपको बहुत गर्व होता है, जब आप अपना झंडा लहराते हुए देखते हैं। अभी ओलिंपिक चल रहे थे, हम अपने खिलाड़ियों को देखकर इतने खुश हो रहे थे। आप इससे कभी थकते नहीं हैं। मुझे अच्छा लगता है, जब हमारे गुमनाम नायकों की कहानी सुनाई जाती है। जैसे, बेल बॉटम में जो किरदार अक्षय निभा रहा है, किसने सुना है कि एक ऐसा रॉ एजेंट था, जिसने ऐसा किया था। कोई जानता ही नहीं है, तो इन किरदारों को बड़े पर्दे पर लाना, बड़े स्टार्स का इन्हें निभाना बहुत अच्छी बात है। ये हमारे इतिहास का हिस्सा है। लोगों को जानना चाहिए कि किन-किन लोगों ने उनकी आजादी या सुरक्षा के लिए क्या-क्या त्याग किए। आपने खुद 'मिस यूनिवर्स' का ताज जीतकर देश का मान बढ़ाया है, आपके लिए देशभक्ति की परिभाषा क्या है?मैं तो एक फौजी की बेटी हूं। मेरे पापा एअरफोर्स में रहे हैं, तो हमारे खून में ही लिखा है कि वतन के आगे कुछ नहीं। ये हमें पैदा होने के वक्त से ही समझाया जाता है। मेरे पिता देश के लिए तीन युद्ध लड़ चुके हैं, 1965, 1969, 1971 में। इसके लिए वह काफी मेडल भी जीत चुके हैं, तो हम इसके अलावा कुछ और जानते ही नहीं हैं। हमारे अंदर जो देशभक्ति है, उसे कोई हमारे खून से मिटा नहीं सकता है। एक फौजी की यह पहचान होती है।
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