लोग आपको और टाइगर को एक फिल्म में साथ देखना चाहते हैं। ऐसा कब देखने को मिलेगा? टाइगर तो कहते हैं कि आप फिल्म में होंगे, तो उन्हें कौन देखेगा? ऐसा थोड़ा है। अभी जितने भी बच्चे मेरे को मिलते हैं, वे टाइगर का बाप ही बोलते हैं। मैं तो चाहता हूं कि हम साथ में दिखें, ताकि मरने के बाद भी एक यादगार छप जाए। कभी टाइगर के बच्चे देखें या टाइगर भी बाद में बोले कि देखो, डैडी और मैं एकसाथ हैं। मैं तो ये चाहता हूं, लेकिन मालूम नहीं ऐसा कब होगा। '' में आप इतने सालों बाद संजू बाबा और मनीषा कोइराला के साथ काम कर रहे हैं। शूटिंग के दौरान कितनी यादें ताजा हुईं? हम तीनों 'कारतूस' के बाद साथ आए हैं। बीस साल हो गए। फिर से एक-दूसरे के साथ काम करते वक्त वही फीलिंग रही। एक-दूसरे के लिए दिल में वही प्यार था। पहले दिन जब मिले, तो अच्छा लगा। बाकी, दत्त साहब (सुनील दत्त) के फैन रह चुके हैं हम। काला टीका लगाकर घूमे हैं हम, मुझे जीने दो की तरह। मैं उनके कई चैरिटी फंक्शंस में गया हूं और बाबा का दोस्त रहा हूं। अब उनकी पिक्चर में काम करने का मौका मिला है, तो सर आंखों पर। जब हम छोटी सी खोली में रहा करते थे, तो दत्त साहब जैसे बड़े स्टार को देखने जाया करते थे। उनकी स्टाइल कॉपी करते थे। आज उनके ऑफिस में बैठकर इंटरव्यू दे रहे हैं, बच्चे के तौर पर जो ख्वाब देखता था, वह पूरा हो गया। फिल्म में मैं संजय दत्त का लॉयल बॉडीगॉर्ड बादशाह बना हूं। मैं समझता हूं कि ये लॉयल्टी हर किसी में होनी चाहिए, लेकिन लॉयल रहना बहुत मुश्किल है। बाकी, ये एक पॉलिटिकल फिल्म है। यूपी में बेस्ड है। एक परिवार की कहानी है। इसमें बाबा और मैंने सॉलिड डांस किया, दबाकर। ऐक्शन किया, दबाकर। ट्रैफिक में भी भागा हूं, मोटरसाइकिल के पीछे, तो बहुत मजा आया। वैसे, आपकी लॉयल्टी की भी लोग मिसाल देते हैं। सुना है कि रोल कैसा भी हो, आप सुभाष घई को कभी न नहीं कहते? सही है, सुभाष जी के लिए मेरी लॉयल्टी आज भी है। वैसे ही, मरहूम देव साहब जब भी बुलाते थे, मैं चला जाता था। मैं दिल से सोचता हूं। जिस दिन दिमाग से काम करने लगा, तो शायद मैं बदल जाऊं। हालांकि, मैं चाहता हूं कि आज के बच्चे दिल-ओ-दिमाग से काम करें। अक्षय कुमार की तरह करियर बनाएं, इंडस्ट्री में इज्जत बनाएं। उस बच्चे (अक्षय कुमार) को भी मैंने शुरू से देखा है। वह जयेश सेठ (फैशन फोटोग्राफर) के यहां से मेरे फोटो सेशन की तस्वीरें लेकर मेरे घर आया करता था। आज वह हिंदुस्तान का सबसे बड़ा टैक्सपेयर, सबसे बड़ा स्टार, एक डिसिप्लिन्ड लड़का, एक हेल्थ कॉन्शस बच्चा है, मुझे लगता है कि बच्चों को उसी को फॉलो करना चाहिए। मेरी तरह फकीर की तरह नहीं रहना चाहिए (हंसते हैं)। लेकिन फकीर सब नहीं बन सकते बिड़ू। अपुन पैदाइशिच फकीर है। आपने इतनी शोहरत और कामयाबी के बाद भी अपनी जड़ें नहीं छोड़ी। आप अब भी तीन बत्ती के अपने चॉल वाले घर में भी जाते रहते हैं। ऐसा क्यों? मैं वहां जाता हूं, क्योंकि मैं वहां कई साल रह चुका हूं। हीरो बनने के बाद भी रहा हूं। टॉइलट जाने के लिए लाइन में लगा हूं, डब्बा पकड़कर। प्रड्यूसर आकर बैठे रहते थे और मैं बोलता था, जरा बाथरूम होकर आता हूं। वहां टॉइलट बाहर था, तो लाइन लगती थी। तीस लोग थे, सात खोली थी, सात खोली पार करके वहां जाना पड़ता था, तो जब आपको मालूम है कि आपने वो जिंदगी गुजारी है, तो फिर क्या है! यह सब सोचने से थोड़ी हुआ। मैंने सोचा नहीं था चाली (चॉल) में बैठकर, डब्बा पकड़कर कि मैं हीरो भी बन जाऊंगा। इस जर्नी को किस तरह याद करते हैं आप? इतनी लंबा जर्नी कैसे याद करूं यार!, 1982 से लेकर आज 37 साल हो गए...। कभी बैठेंगे, तो वॉल्यूम लिखेंगे अपुन लोग। (हंसते हैं) आजकल बहुत से ऐक्टर्स आत्मकथा लिख रहे हैं। आपने भी ऐसा सोचा है क्या? नहीं, उसके लिए तो सोचा भी नहीं है। मुझे उतना याद भी नहीं है, पर मेरे दोस्तों को याद है। वे लोग ऐसे-ऐसे किस्से बताते हैं, जो मुझे याद भी नहीं हैं। मेरी पॉलिसी देव साहब वाली है। आगे का सोच, जो बीत गया, उस बीते हुए वक्त को क्या देखना! क्या होगा पीछे देखकर, मां को ला सकता हूं, नहीं ला सकता हूं, तो आगे चलते रहने का। मोबाइल में कम परिवार, माशूका की आंखों में ज्यादा देखने का। 'प्रस्थानम' एक पॉलिटिकल फिल्म है और आपके साथ के बहुत से ऐक्टर्स ने राजनीति में भी हाथ आजमाया। आपका उस ओर कुछ रुझान है? नहीं, मेरा इतना दिमाग नहीं चलेगा। मेरे को बोलने को भी नहीं आता। पॉलिटिक्स एक अलग चीज है। नेता अलग और अभिनेता अलग, अपुन अभिनेता है, तो उतना ही काफी है। जो काम आता है, वही करना चाहिए। जिसका जो काम है, उसे अच्छी तरह से करे। बाकी, जो रोल अदा करना था, वह पिक्चर में कर रहा हूं। पायलट बनना था, पिक्चर में बन गया। इंस्पेक्टर बनना था, वह भी बन गया। टेररिस्ट नहीं बनना चाह रहा था, मगर पिक्चर में वह भी बन गया। बुरा से बुरा रोल भी किया, अच्छे से अच्छा रोल भी किया। आपकी 'हीरो' रीमेक हुई, राम-लखन के रीमेक की बात थी, इस रीमेक कल्चर पर क्या राय है? मैं बोलने वाला कौन हूं, जब खुद 'देवदास' की है (हंसते हैं)। सिर्फ ये था कि दिलीप साहब की देवदास में मोतीलाल साहब ने चुन्नी बाबू का रोल किया था, तो मैंने उस पिक्चर को देखा नहीं, मैं डर जाता। जिस रोल को मोतीलाल साहब ने किया, वह आप कर रहे हैं, तो वह देखकर आप दोबारा उसे नहीं कर पाते।
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