बीते दिनों नैशनल अवॉर्ड का तमगा अपने नाम करवा चुके बॉलिवुड अभिनेता कहते हैं कि उनके लिए अवॉर्ड से ज्यादा महत्वपूर्ण है, फिल्म को मिलने वाली कमर्शल सक्सेस। बॉक्स ऑफिस में होने वाली धुंआ-धार कमाई चीख-चीख कर फिल्म की सफलता बयान कर देती है। वैसे आयुष्मान का यह भी मानना है कि ऐक्टर्स का मन मासूम बच्चों की तरह होता है। की वजह से जो प्रेशर है मुझ पर, इसे मैं हैपी प्रेशर कहूंगाअपनी रिलीज़ के लिए तैयार फिल्म '' के प्रमोशनल इंटरव्यू के दौरान नवभारतटाइम्स डॉट कॉम से हुई खास बातचीत के दौरान आयुष्मान ने नैशनल अवॉर्ड के बारे में कहा, 'नैशनल अवॉर्ड की वजह से जो प्रेशर है मुझ पर, इसे मैं हैपी प्रेशर कहूंगा। किसी भी फिल्म में काम करने से पहले हम यह नहीं कि हमको नैशनल अवॉर्ड मिलेगा, लेकिन मिलता है तो खुश होते हैं, इनकरेज होते हैं, फिल्मों के चुनाव करने के ढंग को सही समझते हैं।' के बाद, मेरा फिल्म चुनने का तरीका वैलिड हो गया हैआयुष्मान आगे कहते हैं, 'फिल्म करने से पहले बहुत ज्यादा नहीं सोचते कि कौन निर्देशक है और कौन निर्माता है, सिर्फ फिल्म की स्क्रिप्ट के साथ जाते हैं और यही काम आजकल मैं कर रहा हूं। राष्ट्रीय सम्मान की घोषणा के बाद, मेरा फिल्म चुनने का तरीका वैलिड हो गया है, अब मैं इसी सोच के साथ ही आगे भी फिल्म करता रहूंगा।' हम ऐक्टर्स बच्चों की तरह होते हैंअवॉर्ड्स से ज्यादा फिल्म की कमर्शल सफलता के महत्व को बताते हुए आयुष्मान ने कहा, 'कभी-कभी हम बड़े डायरेक्टर के नाम से बहक जाते हैं, मेरा मानना है कि बड़ा डायरेक्टर भी बुरी फिल्म बना सकता है और नया से नया निर्देशक एक सुपरहिट फिल्म दे सकता है, ऐसा हमने देखा भी है। मैं अवॉर्ड्स से ज्यादा फिल्म की कमर्शल सफलता को महत्त्व देता हूं, दर्शकों का प्यार अगर फिल्म को मिलता है तो ज्यादा खुशी होती। हम ऐक्टर्स बच्चों की तरह होते हैं।' स्क्रिप्ट फाइनल करने के बाद पत्नी ताहिरा की राय लेता हूंएक अलग तरह के फिल्मों से बॉलिवुड में अपनी पहचान बनाने वाले आयुष्मान बताते हैं, 'किसी भी फिल्म का चुनाव करना, मेरा अपना निर्णय होता है। स्क्रिप्ट को खुद फाइनल करने के बाद पत्नी ताहिरा और अपनी मैनेजर की राय लेता हूं।' कहानी ऐसी हो जो हिंदी सिनेमा के हिसाब से पहला अटेम्प्ट लगेकिसी फिल्म की कहानी को फाइनल करने के प्रॉसिजर के बारे में बताते हुए आयुष्मान कहते हैं, 'मेरे लिए किसी फिल्म के चुनाव में पहली और महत्वपूर्ण बात है कि कहानी ऐसी हो जो हिंदी सिनेमा के हिसाब से पहला अटेम्प्ट लगे। दूसरी अहम बात फिल्म का विषय यूनिक होने के साथ-साथ 2 से 3 घंटे लोगों को बांध कर रखने में सक्षम हो। कई बार विषय जरूर अच्छा होता है, लेकिन वह 3 घंटे तक दर्शकों को बांध कर नहीं रख पाता। तीसरी बात यह कि फिल्म को लोग आज से 20 साल बाद भी देखें तो उन्हें नया और बेहतर लगे।' फिल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाने का यह मेरा एक तरीका थाबोल्ड, टैबू और स्लैप्स्टिक विषयों का चुनाव कर बॉलिवुड में एक अलग पहचान बनाने वाले आयुष्मान बताते हैं, 'जिस भी विषय को लेकर बाकी ऐक्टर्स हिचकते हैं, वही विषय मुझे सबसे ज्यादा पसंद आता है। मुझे लगता है जब तक आप कुछ अलग नहीं करते, तब तक आपकी जगह नहीं बनती है। यह बात सभी फील्ड में लागू होती है। फिल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाने का यह मेरा एक तरीका था कि जिस विषय या किरदार के लिए बाकी ऐक्टर्स संकोच करते हैं, वह मैं करता हूं।' मैं अपनी किसी भी फिल्म का सीक्वल नहीं करना चाहताअपनी बात समाप्त करते हुए आयुष्मान बताते हैं, 'मैं इस समय बेहद यूनिक पॉजिशन में हूं। इस समय मुझे फिल्म क्रिटिक्स की सराहना के साथ-साथ बॉक्स ऑफिस की सराहना भी मिल रही है। मैं अपनी किसी भी फिल्म का सीक्वल नहीं करना चाहता। मुझे लगता है कि जिस कहानी को कहना था, उसे कहा जा चुका है। अगर कहानी नई है तो जरूर करना चाहूंगा। मुझे नई कहानी में काम करना है, फिल्म 'शुभ मंगल ज्यादा सावधान' में इसलिए काम किया क्योंकि यहां कहानी बिल्कुल नई है। मैं सीक्वल के नाम पर किसी कहानी को खींचने के पक्ष में नहीं हूं। एक फ्रेश स्टोरी का मजा कुछ और ही होता है।'
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