
स्टारर 'लक्ष्मी' में किन्नर का किरदार निभाने के लिए अभिनेता को खूब सराहना मिली। लगभग 15 मिनट के रोल में वह सारी लाइमलाइट ले गए। शरद इन दिनों फिल्मों और वेब सीरीज़ में समान रूप से सक्रिय हैं और बेहतरीन काम कर रहे हैं। बीते साल 'लक्ष्मी' OTT पर रिलीज़ हुई और अब आज यानी 21 मार्च को स्टार गोल्ड पर प्रसारित होने वाली है। टीवी पर 'लक्ष्मी' के प्रसारण को लेकर शरद बेहद उत्साहित हैं। 'लक्ष्मी' में अक्षय ने मेरा काम आसान कर दिया था 'लक्ष्मी' को लेकर नवभारतटाइम्स डॉट कॉम से हुई Exclusive बातचीत में हुए शरद ने कहा, 'अक्षय कुमार ने फिल्म के कुछ सीन्स को पहले ही शूट कर लिया था, इसलिए मेरे लिए यह एक तैयार संदर्भ बिंदु था... अक्षय और मेरा किरदार एक ही है, इसलिए दोनों का मैच होना जरूरी था, अक्षय के पहले से शूट सीन देखने के बाद मेरे लिए किरदार को मैच करना आसान हो गया था।' किन्नरों की कहानियां सुनना दर्दनाक था 'दूसरे हमारे निर्देशक राघव लॉरेंस ने पहले यह फिल्म कंचना की थी, इसलिए उन्हें इस करैक्टर के बारे में एक्सप्रेशन और बॉडी लैंग्वेज जैसी सभी छोटी- छोटी जानकारी थी। साथ ही, शूटिंग से पहले और शॉट पे भी, मैं ट्रांसजेंडरों के साथ बात करता था और उनकी कहानियां सुनता था। उनकी कहानियां सुनना बहुत दर्दनाक था, कि कैसे परिवार और समाज ने उनके साथ गलत व्यवहार किया है।' बच्चों में किन्नरों के लिए डर और नफरत भरना बंद करे समाज 'हमारे समाज में पहले और आज भी बच्चों को किन्नरों या ट्रांसजेंडर से अलग रखा जाता है, उन से डराया जाता है। बच्चों को किन्नरों के करीब जाने से मना किया जाता है। इस रोक -टोक की वजह से बचपन से ही समाज के हर बच्चे के अंदर किन्नरों को लेकर डर या नफरत जैसी भावना पैदा हो जाती है। यह बिल्कुल भी ठीक नहीं है, न तो हमारे समाज के लिए और न ही तैयार हो रही पीढ़ी के लिए।' किन्नरों के लिए नफरत-डर पैदा कर मानवता खत्म कर रहा है समाज 'नई पीढ़ी के मन में इस तरह की गलत भावना पैदा कर हम समाज में मानवता को भी खत्म कर रहे हैं। हमें यहीं से बदलाव करने की जरूरत है। किन्नरों के मामले में उनको नहीं, पूरे समाज को बदलने की बहुत जरूरत है।' समाज के भेद-भाव की वजह से लाउड हैं किन्नर 'कहा जाता है कि किन्नर बहुत लाउड हैं, क्या आप जानते हैं, वह हमारी वजह से लाउड हैं। हमने समुदाय को अपनी सोसाइटी में जगह नहीं दी है, अब जब हम किसी व्यक्ति को सोसाइटी से अलग-थलग करेंगे, तो उसका भी रिऐक्शन होगा और वह खुद के अस्तित्व को जताने-बताने के लिए लाउड होंगे, यह मानव का व्यवहार होता है। पता नहीं समाज क्यों नहीं समझ रहा है। क्यों किन्नरों को अलग रखा जाता है, क्यों उन्हें ह्यूमन की तरह ट्रीट नहीं किया जाता है, हमारे हिसाब से समाज में सिर्फ 2 जेंडर हैं, पुरुष और स्त्री, तीसरा कोई जेंडर है ही नहीं।' किन्नरों की कहानियां सुन रोंगटे खड़े हो गए, रो पड़ा था मैं 'मुझे लगता है कि मेरे अंदर के दर्द ने मुझे सीन्स को अच्छी तरह से ऐक्ट करने में मदद की। उनसे बातचीत के दौरान , उनकी पिछली कहानी सुनकर और मुस्कुराहट में छिपा हुआ दर्द जानकर , मुझे गूसबम्प्स आये और आंखें भर आई। हम अपने दर्द के बारे में बात करते हैं, लेकिन यह उनके सामने कुछ भी नहीं है। उनके संघर्ष को जानना मेरे लिए प्रेरणा थी । अब तो सरकार ने भी रूल्स बना दिए हैं, सबको उतना ही मानव अधिकार है, तो उन्हें क्यों नहीं। कानून बन गया है, लेकिन लोगों में, समाज में, अब भी सुधार नहीं दिखाई दे रहा है।' देश में किन्नरों का कानून बन गया, समाज कब स्वीकार करेगा किन्नरों के लिए देश के कानून ने अपना काम कर दिया है पर अब समाज को भी बदलना होगा, किन्नरों को दिल से एक स्वीकार करना होगा। पहले शिक्षा का स्तर नीचे था, अब फिल्में, किताबें और इंटरनेट की दुनिया में तमाम जानकारियां है, तो लोगों को ख़ास कर युवाओं को जागरूक होने की ज़रुरत है । इस बदलाव में देश को आगे आना होगा। किन्नरों या LGBTQ समुदाय के लोगों को ज्यादातर युवा बुली करते हैं, जो ठीक नहीं है। सच कहूं तो उनके अंदर एक पुरुष और नारी, दोनों के गुण होते हैं। हमसे ज़्यादा विकसित हैं और समझदार हैं।' मेरी बेटी बोली - लक्ष्मी बनें पापा सुंदर लगते हैं 'मेरी बिटिया ने मुझे लक्ष्मी के किरदार में देख कहा कि पापा आप बहुत सुंदर लग रहे हो। लक्ष्मी की भूमिका को निभाने के बाद महिलाओं की इज्जत और बढ़ गई। आप जब तक उनका जीवन नहीं समझेंगे, समझ नहीं पाएंगे कि उनके चलने-उठने-बैठने पर उन्हें कितना ध्यान रखना पड़ता है। हम मर्द किसी भी तरह बैठ जाते हैं, उन्हें बैठने से पहले बहुत सोचना पड़ता है, किस तरह और कैसे बैठना है। उन्हें एक-एक चीज का ख्याल रखना पड़ता है, मर्यादा का बहुत ख्याल रखना पड़ता है।' अब 'भुज: द प्राइड ऑफ इंडिया' में नजर आऊंगा मेरी अगली फिल्म 'भुज: द प्राइड ऑफ इंडिया' है, जो 1971 के वार पर बेस्ड है। आप जानते हैं कि भुज की धरती पर हवाई जहाज के उतरने की जगह महिलाओं द्वारा बनाई गई थी, यह वही कहानी है, देश-भक्ति से ओत-प्रोत फिल्म है। मेरे ऐक्टिंग की तारीफ होती है तो मैं बार-बार अपनी श्रीमती जी यानी बीवी को थैंक यू कहता हूं। मेरी बीवी ने मुझे ऐक्टिंग के ऐसे तरीक़े सिखाएं हैं, जिससे मेरी नींव मजबूत हो गई है। मैं अलग-अलग चीजें करने कोशिश करता हूं और हर दिन हर किरदार से सीखता हूं।' लोगों ने कहा था- बहुत गंदा ऐक्टर है, बीवी को जिंदगी भर कमाना पड़ेगा 'मैं मॉडल था और मेरी बीवी कीर्ति गायकवाड ऐक्ट्रेस थीं। जब मैंने उनके साथ पहला सीन किया तो लोगों ने कहना शुरू कर दिया था कि शरद को ऐक्टिंग नहीं आती, बहुत ही खराब ऐक्टर है, जिंदगी भर बीवी को ही काम करना पड़ेगा। तब जाकर बीवी ने मुझे ऐक्टिंग के बेसिक्स बहुत अच्छी तरह सिखाएं, और ऐक्टिंग के मामले में मेरी नीव मजबूत कर दी।'
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